नर्मदापुरम के शासकीय विधि महाविद्यालय में “बायोमेडिकल लॉ : एथिक्स, रेगुलेशन एंड इमर्जिंग चैलेंजेस” विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का सफल आयोजन
शासकीय विधि महाविद्यालय नर्मदापुरम में उच्च शिक्षा विभाग भोपाल के सहयोग से बायोमेडिकल लॉ विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित, विशेषज्ञों ने रखे विचार।

नर्मदापुरम। उच्च शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल के सहयोग से शासकीय विधि महाविद्यालय, नर्मदापुरम द्वारा “बायोमेडिकल लॉ : एथिक्स, रेगुलेशन एंड इमर्जिंग चैलेंजेस” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का सफल आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. कल्पना भारद्वाज ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि बायोमेडिकल लॉ आधुनिक युग की एक अत्यंत आवश्यक विधा है, जो विज्ञान, चिकित्सा और कानून — तीनों क्षेत्रों को जोड़ती है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में हो रहे तेज़ विकास के कारण कई नए विधिक और नैतिक प्रश्न उभर रहे हैं, जिन पर विचार करना आवश्यक है। डॉ. भारद्वाज ने सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन विद्यार्थियों और शोधार्थियों को समसामयिक विधिक चुनौतियों की समझ प्रदान करते हैं।
मुख्य वक्ताओं ने रखे अपने विचार
वेबीनार की मुख्य वक्ता डॉ. संगीता राय मैत्रा, प्राध्यापक, गोयनका महाविद्यालय कोलकाता ने बायोमेडिकल कानूनों की उपयोगिता और नैतिक आयामों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की। उन्होंने कहा कि मानव जीवन की गरिमा और अधिकारों की रक्षा हेतु चिकित्सा अनुसंधान, अंग प्रत्यारोपण, क्लोनिंग, जेनेटिक इंजीनियरिंग, एआई और टेलीमेडिसिन जैसे क्षेत्रों में कानूनी नियंत्रण अत्यावश्यक है।
डॉ. मैत्रा ने कहा —
“बायोमेडिकल लॉ केवल वैज्ञानिक प्रगति का नियामक नहीं, बल्कि समाज में नैतिक संतुलन बनाए रखने का माध्यम भी है।”
श्री उमंग मोदी, सहायक प्राध्यापक, बड़ौदा विश्वविद्यालय, वडोदरा ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में एथिक्स (नैतिकता) सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। वैज्ञानिक आविष्कार तभी सार्थक हैं जब वे मानवता के हित में हों। उन्होंने विद्यार्थियों को बायोएथिक्स के क्षेत्र में अनुसंधान और विमर्श को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।
डॉ. रणधीर सिंह, निदेशक, भोपाल टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर ने बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट पर केंद्रित अपने उद्बोधन में कहा कि चिकित्सा संस्थानों से निकलने वाला जैविक कचरा यदि उचित ढंग से निष्पादित न किया जाए तो यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। उन्होंने Biomedical Waste Management Rules, 2016 के प्रमुख प्रावधानों और उनके अनुपालन की आवश्यकता पर बल दिया।
संचालन एवं समापन
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अभिषेक सिंह ने किया। उन्होंने विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एआई द्वारा त्रुटिपूर्ण जानकारी की जवाबदेही, मानव जीन्स में संशोधन की सीमा, मरीज की गोपनीयता, बायो-बैंकिंग और मानव जैव सामग्री के विधिक उपयोग जैसे पहलुओं पर इस वेबीनार में चर्चा की गई।
विभागाध्यक्ष एवं संयोजक शिवाकांत मौर्य ने वेबीनार के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
आयोजन सचिव राजदीप भदौरिया ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया, जबकि डॉ. महेंद्र कुमार पटेल ने रिपोर्टिंग की।
कार्यक्रम में डॉ. ओम शर्मा, सुश्री अरुणिका जैन, डॉ. हरिप्रकाश मिश्रा सहित अनेक विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
यह आयोजन न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि इसने प्रतिभागियों को विज्ञान, नैतिकता और विधि के बीच सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा भी प्रदान की।