275 लाख से बन रहा आदिवासी आश्रम भवन, आड़ी बीम झुकी, निर्माण मानकों की खुली अनदेखी
न सूचना बोर्ड, न परीक्षण लैब, आदिवासी बच्चों के लिए बन रहा भवन गुणवत्ता पर सवालों के घेरे में

संवाददाता शैलेंद्र गुप्ता शाहपुर
शाहपुर। जनजातीय कार्य विभाग बैतूल द्वारा लगभग ₹275.43 लाख की लागत से बन रहा आदिवासी बालक आश्रम धार भवन अब गंभीर तकनीकी और प्रशासनिक अनियमितताओं के कारण विवादों में आ गया है। मौके पर निरीक्षण के दौरान यह साफ दिखाई दिया कि भवन के निर्माण में मानकों का पालन नहीं किया जा रहा और पारदर्शिता के नियमों की भी अनदेखी हो रही है।
सूचना बोर्ड और निविदा विवरण का अभाव ,पारदर्शिता पर सवाल
सबसे बड़ी चूक यह है कि निर्माण स्थल पर न तो सूचना बोर्ड लगाया गया है और न ही एनआईटी तथा लागत का अनुमान एस्टीमेट सार्वजनिक किया गया है। जबकि सरकारी निर्माण कार्यों में यह दोनों बातें पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य मानी जाती हैं। इन दस्तावेजों की गैरमौजूदगी से यह जानना असंभव है कि ठेकेदार कौन है, स्वीकृति की तिथि क्या है और कार्य कब तक पूरा किया जाना है।
बीम की झुकान ने बढ़ाई चिंता संरचनात्मक त्रुटि उजागर
भवन की आड़ी बीमें हॉरिज़ॉन्टल बीम सीध में नहीं हैं, बल्कि उनमें धनुषाकार झुकाव साफ दिखाई दे रहा है। तकनीकी भाषा में इसे संरचनात्मक असंतुलन या बीम का झुकाव ,बीम बोइंग कहा जाता है।
यह स्थिति भवन की भार वहन क्षमता पर सीधा असर डालती है। यदि इस स्तर पर सुधार नहीं किया गया तो भविष्य में दरारें पड़ना, झुकाव आना या ढहने जैसी स्थितियां बन सकती हैं। भारतीय मानक कोड आईएस 456 : 2000 साधारण एवं प्रबलित सीमेंट-कंक्रीट कार्य की संहिता के तहत किसी भी भवन में बीम और कॉलम का संरेखण पूरी तरह समतल और समकोणीय होना चाहिए। झुकी हुई बीम यह दर्शाती है कि निर्माण कार्य बिना सटीक नापजोख और तकनीकी पर्यवेक्षण के किया जा रहा है।
गुणवत्ता जांच के साधन नहीं, घटिया सामग्री की आशंका
निर्माण स्थल पर सीमेंट, गिट्टी, रेत और लोहे जैसी सामग्रियों की गुणवत्ता जांच के लिए न तो कोई परीक्षण मशीन उपलब्ध है और न ही फील्ड लैब। जबकि निर्माण नियमों के अनुसार स्लम्प टेस्ट, क्यूब टेस्ट मजबूती जांच, सीमेंट और एग्रीगेट परीक्षण अनिवार्य होते हैं। इन परीक्षणों की अनुपस्थिति यह संकेत देती है कि भवन घटिया सामग्री से तैयार किया जा रहा है और इसकी मजबूती संदिग्ध है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकेदार मनमाने ढंग से कार्य कर रहा है। यदि बीम झुकी हुई हैं तो उसे तुरंत रोका जाना चाहिए और पुनः शटरिंग कर नई ढलाई करनी चाहिए, अन्यथा यह संरचना भविष्य में खतरा बन सकती है।
स्थानीय नागरिकों की नाराजगी और चिंता
ग्राम के वरिष्ठ नागरिक रामकिशन उइके ने कहा, आड़ी बीमें साफ झुकी हुई दिखाई दे रही हैं। इससे साफ है कि काम बिना सीध और नाप के किया जा रहा है। यह भवन कब तक टिकेगा, कहा नहीं जा सकता।
अभिभावक महादेव मास्कोले ने कहा, यह भवन हमारे बच्चों के रहने का है, अगर यही कमजोर हुआ तो उनकी सुरक्षा कौन संभालेगा?
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता संजय ने कहा, सूचना बोर्ड तक नहीं लगाया गया, जांच लैब नहीं है, इंजीनियर निरीक्षण नहीं कर रहे यह सब भ्रष्टाचार और लापरवाही का संकेत है।
अब कार्रवाई की मांग तेज
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और जनजातीय कार्य विभाग से मांग की है कि निर्माण स्थल का तत्काल निरीक्षण कर स्वतंत्र तकनीकी जांच समिति गठित की जाए। भवन की मजबूती, सामग्री की गुणवत्ता और स्ट्रक्चरल सीध की जांच विशेषज्ञों से कराई जाए ताकि हकीकत सामने आ सके। यह भवन केवल ईंट और गारे का ढांचा नहीं, बल्कि आदिवासी बच्चों के भविष्य की नींव है। ऐसे में मानकों की अनदेखी को किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब देखना होगा कि विभाग और प्रशासन इस गंभीर लापरवाही पर कब तक मौन रहते हैं।
निर्माण के दौरान ओवर कास्टिंग के कारण कुछ जगहों पर बीम झुकी हुई दिखाई दे रही हैं। उन्होंने कहा कि सभी बीम तय प्रक्रिया के अनुसार डाली गई हैं और उनकी क्यूरिंग भी की गई है। उस समय काम के दौरान स्थल पर कुछ तकनीकी दिक्कतें थीं, जिससे बीम का संतुलन थोड़ा असमान दिख रहा है। लेकिन भवन संरचनात्मक रूप से सुरक्षित है और काम की गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं किया गया है।
रजनीश पटेल इंजीनियर
जनजातीय कार्य विभाग बैतूल