माखननगर स्कूल विवाद: शिक्षक का अपमान, प्रशासन की चुप्पी और ‘छुट्टियों का पैकेज’

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
माखननगर/नर्मदापुरम। शिक्षा को राष्ट्र निर्माण की आधारशिला कहा जाता है, लेकिन माखननगर ब्लॉक के एक स्कूल में घटी हालिया घटना ने इस नींव को ही हिला कर रख दिया है। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक राधेलाल मेहरा के साथ हुई अभद्रता ने न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था बल्कि पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बीस दिन से एफआईआर अटकी, शिक्षक की गुहार अनसुनी
4 अगस्त को जनशिक्षक नारायण मीना निरीक्षण के लिए झालौन स्कूल पहुँचे, तो पाया कि हेडमास्टर सुनील शर्मा और दो महिला शिक्षिकाएँ 28 जुलाई से लगातार अनुपस्थित थीं। पूछताछ करने पर गाली-गलौज हुआ और शिक्षक राधेलाल मेहरा को अपमानित किया गया।
लिखित शिकायत चौकी प्रभारी और अजाक थाना—दोनों जगह दी गई, लेकिन बीस दिन बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई।
पुलिस और विभाग की लापरवाही
पुलिस जहाँ अन्य मामलों में त्वरित कार्रवाई करते हुए हरिजन एक्ट तक लगा देती है, वहीं यहाँ एक शिक्षक की शिकायत पर भी गंभीरता नहीं दिखाई गई।
शिक्षा विभाग ने भी दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय पीड़ित शिक्षक को दूसरे विद्यालय में अटैच कर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया।
‘छुट्टियों का पैकेज’ बना मज़ाक
झालौन एकीकृत माध्यमिक शाला की स्थिति किसी विडंबना से कम नहीं। 28 जुलाई से 4 अगस्त तक स्कूल में शिक्षक व शिक्षिकाएँ लगातार गैरहाजिर रहे।
कक्षाओं में सन्नाटा और हाजिरी रजिस्टर खाली रह गया। स्थानीय लोगों ने तंज कसते हुए कहा—“शर्मा जी ने शायद खुद ही छुट्टियों का पैकेज घोषित कर लिया है।”
विभागीय कार्रवाई अधूरी
शिकायतें BRC से लेकर DEO तक पहुँचीं। अंततः 26 अगस्त को संयुक्त संचालक नर्मदापुरम ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और मामला सिविल सेवा नियम 1966 की धारा 16 के तहत गंभीर माना।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि—क्या नोटिस के बाद वास्तविक कार्रवाई होगी या यह भी खानापूर्ति बनकर रह जाएगा?
शिक्षा और समाज पर असर
यह प्रकरण बताता है कि न्याय और सम्मान आज राजनीतिक पहुँच वालों तक सीमित हो गया है। जब एक साधारण शिक्षक की बात नहीं सुनी जाती, तो शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों के भविष्य पर इसका असर होना तय है।
पत्रकार की दृष्टि
माखननगर की यह घटना केवल एक स्कूल की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के गिरते मानकों की तस्वीर है। शिक्षा विभाग, पुलिस और प्रशासन—तीनों की निष्क्रियता दर्शाती है कि देश के भविष्य को गढ़ने वाले गुरुजन आज राजनीति और सत्ता के आगे बेबस हैं।
बड़ा सवाल यही है—क्या शिक्षक राधेलाल मेहरा और जनशिक्षक नारायण मीना को न्याय मिलेगा या फिर सुनील शर्मा का ‘छुट्टियों का पैकेज’ शिक्षा व्यवस्था की एक और काली गाथा बन जाएगा?