मध्य प्रदेश

संघ शताब्दी वर्ष पर विजयादशमी उत्सव, बसुरिया में भव्य पथसंचलन

संवाददाता अवधेश चौकसे

सालीचौका नरसिंहपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर समीपस्थ ग्राम बसुरिया मंडल में विजयादशमी उत्सव का भव्य आयोजन विगत 9 अक्टूबर को बसुरिया के छोटा बाजार में किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि रमेश नगपुरिया और मुख्य वक्ता यशवंत पटेल पूर्व जिला प्रचारक अनूपपुर,खंड टोली से सहकार्यवाह मोहन बघेले,खंड ग्राम विकास प्रमुख रामेश्वर वर्मा, खंड प्रचार प्रमुख मनीष नगपुरिया, खंड सहबौद्धिक प्रमुख वीरेंद्र वर्मा, उपखंड कार्यवाह ओमप्रकाश मुहारिया, मंडल कार्यवाह शुभम गुप्ता सहित ग्राम के वरिष्ठ नागरिक जयप्रकाश वर्मा,कमलेश सिलोकिया,रामकुमार बड़कुर,रामकुमार नगपुरिया उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में शस्त्र पूजन, अमृतवचन और एकल गीत के बाद बौद्धिक सत्र में मुख्य वक्ता पूर्व जिला प्रचारक यशवंत पटेल ने संघ के 100 वर्षों के संघर्ष और योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संघ पर भारत के इतिहास में तीन बार प्रतिबंध लगाए गए—1948, 1975 और 1992।

पहला प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगा, लेकिन जांच में संघ निर्दोष पाया गया और बाद में समाज सेवा, शिक्षा एवं संस्कार निर्माण में संघ ने तेजी से योगदान दिया। दूसरा प्रतिबंध 1975 में आपातकाल के दौरान लगा, जिसमें संघ ने भूमिगत रहकर लोकतंत्र की रक्षा में अहम भूमिका निभाई। तीसरा प्रतिबंध 1992 में अयोध्या घटना के बाद लगाया गया, लेकिन जांच में दोष न पाए जाने पर इसे हटा दिया गया। इस प्रकार, जब-जब संघ को रोकने का प्रयास हुआ, संघ और अधिक निखरकर, राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर हुआ।

मुख्य वक्ता ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों ने गोवा मुक्ति आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाकर देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने में मदद की। कच्छ भूकंप राहत कार्य के दौरान संघ के स्वयंसेवक दिन-रात पीड़ितों की सहायता में जुटे रहे और भोजन, वस्त्र तथा पुनर्वास की व्यवस्था में सहयोग किया। उन्होंने आगे बताया कि वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने मोर्चे तक रसद, सामग्री और भोजन पहुँचाने में सेना का सहयोग किया। इसी प्रकार 1965, 1971 और 1999 के भारत-पाक युद्धों के दौरान स्वयंसेवकों ने देश के भीतर यातायात नियंत्रण, शरणार्थी सहायता और संचार व्यवस्था संभालने में प्रशासन की मदद की। संघ की अनुशासित और समर्पित सेवा से प्रभावित होकर वर्ष 1963 में संघ को गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित किया गया, जहाँ करीब 3,000 स्वयंसेवकों ने गणवेश में राजपथ पर संचलन कर अनुशासन और सेवा का अद्भुत प्रदर्शन किया।
मुख्य वक्ता ने यह भी कहा कि कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों ने संघ के खिलाफ भ्रम और आरोप फैलाए, लेकिन संघ ने विवाद या बहस से नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा और समाज सेवा के माध्यम से इसका जवाब दिया।

उन्होंने जोर देकर कहा कि संघ का उद्देश्य हमेशा समाज और राष्ट्र की सेवा रहा है, और यही कारण है कि संघ हर कठिन परिस्थिति में समाज में सम्मान और स्वीकार्यता के साथ उभरा है। शताब्दी वर्ष के अंतर्गत आगे “गृह गृह संपर्क अभियान” तथा “हिंदू सम्मेलन” जैसे जनजागरण और सामाजिक एकता के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने हैं, जिनके माध्यम से समाज में संगठन, संस्कार और राष्ट्रभावना को सुदृढ़ करने का संकल्प लिया गया।

बौद्धिक सत्र के पश्चात नगर के मुख्य मार्गों से लगभग सवा सौ स्वयंसेवकों ने भव्य पथसंचलन निकाला। स्वयंसेवक गणवेश में हाथों में दंड लिए और घोष दल के साथ पथसंचलन में शामिल हुए। मार्गों में जगह-जगह उनका उत्सवपूर्ण स्वागत किया गया। इस अवसर पर अनुशासन, एकता और उत्साह का अनुपम प्रदर्शन देखने को मिला।

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