पिपरिया में नेता की आवाज़ दबाई गई, लोकतंत्र पर उठे गंभीर सवाल
“जब-जब सत्ता डरती है, पुलिस को आगे करती है।”

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
पिपरिया की सुबह आज किसी सामान्य दिन से बिल्कुल अलग थी। शहर की गलियां और चौक-चौराहे सन्नाटे में डूबे हुए थे, और हवा में हल्की सरसराहट के बीच आम लोगों की फुसफुसाहटें वातावरण में गूँज रही थीं। “सुने हो क्या? चिंकू कमलेश को घर में ही बंद कर दिया पुलिस ने!” — यह खबर जैसे आग की तरह शहर भर में फैल गई।
कमलेश साहू, जिन्हें लोग प्यार से चिंकू भाई कहते हैं, आज अपने घर में ही अपनी बात रख रहे थे। उनके घर के बाहर तैनात पुलिस ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी अंदर-बहार न जा सके। इस घटना ने लोकतंत्र की मूल भावना पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया।
सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर इस कार्रवाई की तीखी आलोचना हुई। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए विरोध दर्ज कराया। सोशल मीडिया पर शिवाकांत पांडे ने लिखा, “जब-जब सत्ता डरती है, पुलिस को आगे करती है।”
जिला अध्यक्ष गुड्डन पांडे ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “कमलेश साहू केवल एक नेता नहीं हैं, वे जनता की आवाज़ हैं। किसी भी तैनाती या दरवाजे से इस आवाज़ को बंद नहीं किया जा सकता। उनकी आवाज़ जनता के दिलों में हमेशा गूंजती रहेगी।”
पिपरिया के चौक-चौराहों पर कांग्रेस कार्यकर्ता और स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन करते दिखे। उनका कहना था, “अगर बोलना जुर्म है, तो हम सब जुर्म करेंगे। हम आवाज़ को दबने नहीं देंगे।”
स्थानीय बुजुर्गों और आम लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पहले मंत्री के आगमन पर सड़कों का निर्माण और विकास होता था, अब मंत्री आते हैं तो आवाज़ों को दबाने की कोशिश की जाती है। आम लोग महसूस कर रहे हैं कि सच की आवाज़ को रोकना अब किसी भी व्यवस्था से संभव नहीं।
सोशल मीडिया और स्थानीय संवादों में यह संदेश तेज़ी से फैल रहा है कि मंत्री आएंगे और चले जाएंगे, लेकिन कमलेश साहू की आवाज़, जो अस्थायी तौर पर घर की दीवारों में बंद की गई थी, अब जनता के दिलों में स्थायी रूप से गूंज रही है। पिपरिया की गलियों में आज यही महसूस किया जा रहा है कि सच की आवाज़ को किसी भी शक्ति द्वारा बंद नहीं किया जा सकता