पर्युषण महापर्व – नौवा दिन : उत्तम आकिंचन धर्म, दिव्य शांति धारा एवं वृक्षारोपण का संकल्प

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
पर्युषण महापर्व के पावन अवसर पर नवें दिन सांगानेर तीर्थ संस्थान से पधारे विद्वान आयुष भैया जी के सानिध्य में विश्व कल्याण एवं समस्त प्राणियों की शांति हेतु श्रीजी का दिव्य मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक एवं शांति धारा संपन्न हुई।
इस अवसर पर विशेष रूप से उत्तम आकिंचन धर्म की पूजा अर्चना की गई। भैया जी ने प्रवचन में कहा कि “आकिंचन धर्म केवल भौतिक वस्तुओं का त्याग नहीं है, बल्कि मन और आत्मा को आसक्ति एवं परिग्रह से पूर्णत: मुक्त करने की साधना है।” उन्होंने साथ ही समाज को पर्यावरण संरक्षण की ओर जागरूक करते हुए प्रत्येक परिवार को वृक्षारोपण का संकल्प दिलाया।
उत्तम आकिंचन धर्म का आध्यात्मिक मर्म
समाज के अध्यक्ष श्री संतोष जैन ने कहा कि आकिंचन धर्म जैन धर्म का गहन सिद्धांत है, जो हमें यह समझाता है कि –
• आत्मा के अतिरिक्त संसार में कुछ भी वास्तव में अपना नहीं है।
• ‘मैं’ और ‘मेरा’ का भाव ही बंधन का कारण है, और उसका त्याग ही मुक्ति का मार्ग है।
• भौतिक पदार्थ, शरीर, धन, संपत्ति और संबंध – ये सब नश्वर हैं, अत: इनसे आसक्ति छोड़ना ही सच्चा आकिंचन है।
• केवल बाहरी परिग्रह त्याग पर्याप्त नहीं, बल्कि भीतर से भी इच्छाओं, आसक्तियों और मोह का परित्याग करना आवश्यक है।
• यह धर्म तभी उत्तम आकिंचन कहलाता है जब यह भाव सम्यग्दर्शन (सच्ची श्रद्धा) के साथ प्रकट होता है।
आकिंचन धर्म का पालन करने से आत्मा हल्की होकर अपने शुद्ध स्वरूप को पहचानती है और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होती है।
इसी कारण इसे आत्म-ज्ञान, वैराग्य और मुक्ति का सीधा साधन बताया गया है।
सांध्यकालीन कार्यक्रम
संध्या में श्रीजी की मंगल आरती एवं भक्ति सम्पन्न हुई। इसके पश्चात मंगलवाणी प्रवचन हुए, जिनमें श्रद्धालुओं ने धर्म का गहन लाभ लिया।
कार्यक्रम के अंत में समाज के बच्चों द्वारा आयोजित फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता ने सभी का मन मोह लिया और वातावरण को उल्लासमय बना दिया।
सहभागिता एवं समापन
इस पावन अवसर पर समाज के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव और वैराग्य के साथ सहभागिता कर धर्मलाभ अर्जित किया।
अंत में आभार आलोक जैन (सचिव) द्वारा किया गया।
इस प्रकार पर्युषण महापर्व का नौवां दिन – उत्तम आकिंचन धर्म समाज को यह शिक्षा देकर गया कि त्याग और वैराग्य से ही आत्मा का सच्चा कल्याण संभव है, और मोक्ष मार्ग का द्वार इसी भाव से खुलता है।