पर्युषण महापर्व का समापन : उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म एवं मोक्ष कल्याणक महापर्व

नर्मदापुरम। जैन समाज के पावन पर्व पर्युषण महापर्व का दस दिवसीय आयोजन शनिवार को धूमधाम एवं धार्मिक भावनाओं के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अनंत चतुर्दशी के पावन दिन को भगवान वासुपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक दिवस के रूप में बड़ी श्रद्धा और भक्ति से मनाया गया।
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का महत्व
दसलक्षण महापर्व के दसवें लक्षण उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर प्रवचन देते हुए विद्वान आयुष भैया जी (सांगानेर तीर्थ संस्थान) ने कहा कि ब्रह्मचर्य केवल इन्द्रिय संयम तक सीमित नहीं, बल्कि विचार, वचन और आचरण की पवित्रता का प्रतीक है। यह आत्मा को संसार बंधनों से मुक्त कर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करता है।
धार्मिक अनुष्ठान एवं विधान
पर्व के अंतिम दिन मंदिर प्रांगण में अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित हुए –
- प्रातःकाल 108 कलशों से श्रीजी का अभिषेक एवं शांतिधारा।
- दसलक्षण महामंडल विधान का समापन।
- निर्वाण लाडू चढ़ाने का पावन अनुष्ठान।
- संध्या को मंगल आरती, प्रवचन एवं विश्व शांति के लिए सामूहिक प्रार्थना।
क्षमावाणी – ‘मिच्छामि दुक्कडम्’
जैन धर्म में क्षमा को सर्वोच्च धर्म माना गया है। पर्व के समापन पर सभी ने ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ कहते हुए आपसी राग-द्वेष को त्यागकर एक-दूसरे से क्षमा मांगी। यही भाव पर्युषण महापर्व का वास्तविक संदेश है।
समाज की सहभागिता
इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया।
समाज के वरिष्ठजन – श्री मुन्नालाल जैन, डॉ. आर.के. जैन, प्रवीण जैन, एन.सी. जैन, ज्ञानचंद जैन, डॉ. प्रदीप जैन, विकास जैन सहित अनेक गणमान्य सदस्य उपस्थित रहे।
आयोजन की सफलता हेतु अध्यक्ष श्री संतोष जैन ने मार्गदर्शन दिया तथा आभार ज्ञापन सचिव श्री आलोक जैन ने किया।
इस प्रकार दस दिवसीय पर्युषण महापर्व आत्म-शुद्धि, संयम और क्षमा के अमूल्य संदेशों के साथ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।