पर्युषण पर्व – आठवां दिन : उत्तम त्याग धर्म
विद्यासागर पाठशाला के बच्चों द्वारा अभिषेक एवं शांति धारा

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
पर्वराज पर्युषण महापर्व के आठवें दिन सांगानेर तीर्थ संस्थान से पधारे विद्वान आयुष भैया जी के सानिध्य में श्री विद्यासागर पाठशाला के नन्हे बच्चों ने गहन श्रद्धा और भक्ति के साथ श्रीजी का दिव्य मंत्रों द्वारा अभिषेक एवं शांति धारा कर पुण्य अर्जित किया।
दसलक्षण महामंडल विधान के अंतर्गत आज उत्तम त्याग धर्म की विशेष पूजा संपन्न हुई।
त्याग धर्म की व्याख्या
इस अवसर पर आयुष भैया जी ने त्याग धर्म के प्रभाव एवं परिणाम का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि –
• आत्मशुद्धि के लिए विकार भावों को छोड़ना ही वास्तविक त्याग है।
• स्व एवं परोपकार की दृष्टि से धन आदि का दान करना भी त्याग धर्म है।
• भोग में लाई गई वस्तु को छोड़ देना त्याग का प्रतीक है।
• आध्यात्मिक स्तर पर राग, द्वेष, क्रोध, मान आदि विकार भावों का आत्मा से छूट जाना ही सच्चा त्याग है।
समाज अध्यक्ष श्री संतोष जैन ने कहा कि –
गृहस्थों के लिए त्याग का अर्थ है दान धर्म, और तपस्वियों के लिए यह प्रतिग्रह व्रत है, अर्थात सांसारिक वस्तुओं से विरक्त होकर आसक्ति से मुक्त रहना।
त्याग का महत्व
सर्वज्ञ भगवान जिनेंद्र देव ने मोक्ष मार्ग में त्याग को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है।
• त्याग मनुष्य को महानता प्रदान करता है।
• यह सुख, शांति और आत्मबल की प्राप्ति का मार्ग है।
• जैन तीर्थंकरों एवं मुनियों द्वारा सांसारिक राज्य, वैभव और ऐश्वर्य का त्याग सर्वोच्च आदर्श का प्रतीक है।
सारांशतः, उत्तम त्याग धर्म के फलस्वरूप ही हमें मानव योनि प्राप्त हुई है और इस भव में किए गए त्याग एवं दान निश्चित ही हमें अगले भव में भी श्रेष्ठता प्रदान करेंगे।
सांध्यकालीन कार्यक्रम
संध्या में श्रीजी की मंगल आरती एवं भक्ति के उपरांत मंगलवाणी प्रवचन हुए। तत्पश्चात समाज के बच्चों द्वारा आयोजित नृत्य प्रतियोगिता ने सभी का मन मोह लिया।
आज के कार्यक्रम में समाज के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सहभागिता कर धर्मलाभ अर्जित किया।
अंत में आभार प्रदर्शन श्री आलोक जैन (सचिव) द्वारा किया गया।