जंगल की लूट: अफसरों की नींद और तस्करों की मौज नर्मदापुरम में वन विभाग की छापेमारी – महज एक दिखावा?

संवाददाता राकेश पटेल इक्का
नर्मदापुरम के जंगलों में अवैध कटाई का सिलसिला सालों से जारी है, और वन विभाग के अफसर जैसे गहरी नींद में सोए हुए हैं। तीन दिन पूर्व शुरू हुई छापेमारी को देखकर लगता है जैसे यह महज एक खानापूर्ति है, एक दिखावा है जो वास्तविकता से कोसों दूर है।
सवालिया निशान: कितनी सागौन जब्त हुई?
जनता के मन में सवाल उठ रहे हैं – आखिर कितने घन मीटर सागौन जब्त हुए? पकड़ी गई लकड़ी का क्या हुआ? वन विभाग ने दुकानों और बाजारों में छापे क्यों नहीं मारे? अगर कार्रवाई इतनी ही प्रभावी थी, तो फिर तस्करों के हौसले इतने बुलंद क्यों हैं?
तस्करों का साम्राज्य, अफसरों की लापरवाही
सांभर के शिकारियों, बाघ के पंजे काटने वालों और चिपिखापा के 1260 पेड़ों को काटने वाले तस्कर आज भी बेखौफ घूम रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी कागजी कार्रवाई में व्यस्त हैं, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि जंगल उजड़ चुके हैं और वन्यजीव संकट में हैं।
करोड़ों की पगार, परिणाम शून्य
वन विभाग के अधिकारी करोड़ों रुपये की पगार उठा रहे हैं, लेकिन तस्करों पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम हैं। एक स्थानीय निवासी ने तंज कसते हुए कहा, “अगर इतनी पगार में भी काम नहीं होना था, तो हमें दे देते – हम कम से कम तेंदुए की दहाड़ गिनकर बता देते कि जंगल में कितने जानवर बचे हैं!”
फाइलों का खेल, जंगल की तबाही
कागजों पर कार्रवाई, फर्जी रिपोर्ट और खानापूर्ति – यही वन विभाग का असली चेहरा है। दिसंबर 2024 में भी अफसरों ने दिखावे के लिए ड्रामा किया, जैसे कोई छात्र होमवर्क कॉपी में लिखकर टीचर को चकमा दे देता है। आरोप पत्र जारी होने के बाद अब सारा मामला ऐसे लग रहा है जैसे “घर जल गया और अफसर राख कुरेदकर सबूत ढूंढ रहे हैं।”
जंगल की दुर्दशा पर उठते सवाल
नर्मदापुरम के जंगलों की इस दुर्दशा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं – क्या वन विभाग सिर्फ दिखावे के लिए छापेमारी कर रहा है? क्या जंगल की लूट ऐसे ही चलती रहेगी? क्या अफसरों की नींद से जंगल को बचाया जा सकता है? ये सवाल अब जनता के मन में हैं और जवाब की तलाश है।