आज महाराज अजमीढ़ देव जयंती 2025: अजमेर के संस्थापक और मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष की गौरवगाथा
7 अक्टूबर 2025 को मनाई जा रही है महाराज अजमीढ़ देव जी की जयंती। जानिए कौन थे अजमेर के संस्थापक और मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष, जिन्होंने धर्म, पराक्रम और स्वर्णकला से समाज को नई दिशा दी।

महाराज अजमीढ़ देव जयंती पर विशेष
आज शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि) को पूरे देश में विशेष रूप से महाराज अजमीढ़ देव जी की जयंती मनाई जा रही है।
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज इस दिन अपने आदि पुरुष, संस्थापक और प्रेरणा स्रोत महाराज अजमीढ़ देव जी को नमन करता है।
मंदिरों, सभागृहों और समाजिक स्थलों पर पूजन, कथा, भजन और सत्संग के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
अजमेर के संस्थापक और आदि पुरुष
राजस्थान के प्रसिद्ध शहर अजमेर, जिसका प्राचीन नाम अज्मेरू था, की स्थापना महाराज अजमीढ़ देव जी ने की थी।
वे न केवल एक वीर क्षत्रिय राजा थे, बल्कि मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष के रूप में भी पूज्य हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, वे त्रेता युग में जन्मे थे और भगवान श्रीराम के समकालीन एवं उनके परम मित्र थे।
उनका वंश अत्रि ऋषि की 28वीं पीढ़ी से संबंधित बताया गया है।
वंश और राज्यकाल का गौरव
महाराज अजमीढ़ जी के पिता महाराज श्रीहस्ति थे, जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर नगर बसाया।
अजमीढ़ जी जेष्ठ पुत्र होने के कारण हस्तिनापुर की राजगद्दी के उत्तराधिकारी बने और बाद में प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग) तथा हस्तिनापुर, दोनों के सम्राट हुए।
इतिहासकारों के अनुसार उनका शासनकाल ईसा पूर्व 2200 से 2000 वर्ष के बीच माना जाता है।
हस्तिनापुर कालांतर में कौरवों की राजधानी बना, जहाँ से भारत का एक महत्वपूर्ण इतिहास लिखा गया।
स्वर्णकला परंपरा के जनक
महाराज अजमीढ़ देव जी धर्म-कर्म के प्रति समर्पित और कला-प्रेमी राजा थे।
उन्हें खिलौने, बर्तन और आभूषण बनाने का विशेष शौक था।
वे अपने हाथों से बने स्वर्णाभूषण प्रियजनों को भेंट करते थे।
उनकी इसी रुचि ने उनके वंशजों को प्रेरित किया और उन्होंने इसे अपने जीवनयापन और परंपरा के रूप में अपना लिया।
तभी से यह वंश स्वर्णकार समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ, और आज भी उनकी कला की परंपरा निरंतर जारी है।
धर्म, पराक्रम और संस्कृति के प्रतीक
अजमीढ़ देव जी एक महान क्षत्रिय पराक्रमी राजा थे।
उन्होंने समाज में धर्म, न्याय और सदाचार की स्थापना की।
उनके नेतृत्व में राज्य में कला, धर्म और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला।
जयंती उत्सव का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज देशभर में अजमीढ़ देव जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाता है।
इस दिन सामूहिक पूजा, दीप प्रज्वलन, आरती और समाजिक सभाएं आयोजित की जाती हैं।
समाज के वरिष्ठ सदस्य अपने युवाओं को उनकी गौरवशाली परंपरा और इतिहास से अवगत कराते हैं।
सांस्कृतिक प्रेरणा और निष्कर्ष
महाराज अजमीढ़ देव जी भारतीय संस्कृति में धर्म, पराक्रम और कला के अद्वितीय प्रतीक हैं।
उन्होंने दिखाया कि कला में भी आत्मा बसती है और धर्म के साथ रचना करने से ही समाज का उत्थान होता है।
आज उनकी जयंती पर समाज के लोग न केवल उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, बल्कि उनके आदर्शों को जीवन में अपनाने का संकल्प भी लेते हैं।
संक्षेप में:
आज की शरद पूर्णिमा पर हम सभी मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष, अजमेर के संस्थापक,
महाराज अजमीढ़ देव जी को नमन करते हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है — धर्म, पराक्रम और कला का संगम ही सच्ची भारतीय संस्कृति की पहचान है।